Wednesday 23 November 2011

मातृभूमि गान से गूँजता रहें गगन


मातृभूमि गान से गूँजता रहें गगन
स्नेह नीर से सदा फूलते रहें सुमन || धृ ||

जन्मसिद्ध भावना स्वधर्म का विचार हो,
रोम-रोम में रमा स्वधर्म संस्कार हो |
आरती उतारते प्राणदीप हो मगन,
स्नेह नीर से सदा फूलते रहे सुमन ||||

हार के सुसूत्र में मोतियों की पंक्तियाँ,
ग्राम नगर प्रान्त से संग्रहित शक्तियाँ |
लक्ष्य-लक्ष्य रूप से राष्ट्र हो विराटतन
स्नेह नीर से सदा फूलते रहे सुमन ||||

ऐक्य शक्ति देश की प्रगति मे समर्थ हो,
धर्म आसरा लिये मोक्ष काम अर्थ हो |
 पुण्यभूमि आज फिर ज्ञान का बने सदन
स्नेह नीर से सदा फूलते रहे सुमन ||||

Monday 7 November 2011

हे ऋषिवर शत शत वंदन


हे ऋषिवर शत शत वंदन
हे ऋषिवर शत शत वंदन
हे ऋषिवर शत शत वंदन ॥धृ॥

हे महानतम संन्यासी, हिन्दुराष्ट्र के अभिलाषी 
जग कल्याणमयी संस्कृति का, करते थे पल-पल चिंतन ॥१॥

हे विराट हे स्नेहागार, हुए ध्येय से एकाकार 
गरलपान अमृत छलकाया, इस युग में सागर मंथन ॥२॥ 

हे परिव्राजक राष्ट्रपुजारी, तुमसे षडरिपु शक्ति हारी 
कोटि कोटि नवयुवक बढ़ रहे, कर न्योछावर निज यौवन ॥३॥

हे अभिनव अनथक योगी, निश्चित पूर्ण विजय होगी 
अखंड मान वैभव ले प्रगटे, दसों दिशा से यज्ञ सुगंध ॥४॥|