Wednesday 14 November 2012

बढें निरंतर हो निर्भय,
गूँजे भारत की जय-जय ।।धृ।।


याद करें अपना गौरव
याद करें अपना वैभव
स्वर्णिम युग को प्रकटाएँगे,
मन में धारें दृढ निश्चय ।।।।


वीरव्रती बनकर हुँकारें,
जन-जन का सामर्थ्य बढ़ाएँ ।
दशों दिशा से ज्वार उठेगा,
चीर चलेंगे घोर प्रलय ।।२।।

कर्म समर्पित हो हर प्राण,
यश अपयश पर ना हो ध्यान ।
व्यमोही आकर्षण तज दें,
आलोकित हो शील विनय ।।३।।

सृजन करें नव शुभ रचनाएँ, 

सत्य अहिंसा पथ अपनाएँ ।
मंगलमय हिंदुत्व सुधा से,
छलकाएँगे घट अक्षय ।।४।।

Tuesday 6 November 2012

चलो जलाएँ दीप वहाँ, जहाँ अभी भी अंधेरा है


चलो जलाएँ दीप वहाँ, जहाँ अभी भी अंधेरा है ॥धृ॥

स्वेच्छाचारी मुक्तविहारी युवजन खाए ठोकर आज 
मैं और मेरा व्यक्ति केन्द्रित विचार मन मे करता राज 
नष्ट-भ्रष्ट परिवार तन्त्र ने डाला अब यहाँ डेरा है ॥१॥

सुजला सुफला धरती माँ को मानव पशुओं ने लूटा 
पृथ्वी माँ हम बच्चे उसके, किया भाव यह सब झूठा 
भौतिकता की विषवेला ने अखिल विश्व को घेरा है ॥२॥

नही डरेंगे, नही रुकेंगे, बढते जाएँ आगे हम 
परिवर्तन की पावन आँधी लाकर ही हम लेंगे दम 
संघ शक्ति के रूप में देखो अब हो रहा सवेरा है ॥३॥

यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगा धारा ?


यह कल-कल छल-छल बहतीक्या कहती गंगा धारा ?
युग-युग से बहता आतायह पुण्य प्रवाह हमारा धृ 

हम इसके लघुतम जल कणबनते मिटते हैं क्षण-क्षण 
अपना अस्तित्व मिटाकरतन मन धन करते अर्पण 
बढते जाने का शुभ प्रणप्राणों से हमको प्यारा 

इस  धारा में घुल मिलकरवीरों की राख बही है 
इस  धारा में कितने हीऋषियों ने शरण ग्रही है 
इस धारा की गोदी मेंखेला इतिहास हमारा 

यह अविरल तप का फल हैयह राष्ट्रप्रवाह प्रबल है 
शुभ संस्कृति का परिचायकभारत माँ का आँचल है 
हिंदु की चिरजीवनमर्यादा धर्म सहारा 

क्या इसको रोक सकेंगेमिटने वाले मिट जाएँ  
कंकड पत्थर की हस्तीक्या बाधा बनकर आए 
ढह जायेंगे गिरि पर्वतकाँपे भूमंडल सारा 

अपनी धरती अपना अम्बर



अपनी धरती, अपना अम्बर, अपना हिन्दुस्थान ।
हिम्मत अपनी, ताकत अपनी, अपना वीर जवान ॥धृ॥

हिमगिरि शीश मुकुट रत्नारे, सागर जिसकॆ चरण पखारे
गंगा-यमुना की धाराएँ  निर्माणों की नीर सँवारे
नई-नई आशाएँ अपनी, अपना हर उत्थान ॥१॥

विमल इंदु की विमल चाँदनी, चंदा सूरज करे आरती
मलयानिल के मस्त झकोरे, चँवर डुलाए तुझे भारती
कण-कण गाए गौरव गाथा, अपना देश महान ॥२॥

नेफा और लद्दाख वतन के दोनों अपने आँगन द्वारे
प्राणों को न्योछावर करते भारत माँ के वीर दुलारे
निशिदिन याद हमें आते हैं वीरों के बलिदान ॥३॥

Friday 2 November 2012

भारत माँ का मान बढाने बढ़ते माँ के मस्ताने



भारत माँ का मान बढाने बढ़ते माँ के मस्ताने ।
कदम-कदम पर मिल-जुल गाते वीरों के व्रत के गाने ॥धृ॥

ऋषियों के मन्त्रों की वाणी भरती साहस नस-नस में।
चक्रवर्तियों की गाथा सुन, नहीं जवानी है बस में।
हर-हर महादेव के स्वर से विश्व-गगन को थर्राने ॥१॥ 

हम पर्वत को हाथ लगाकर संजीवन कर सकते हैं,
मर्यादा बनकर असुरों का बलमर्दन कर सकते हैं;
रामेश्वर की पूजा करके जल पर पत्थर तैराने ॥२॥

जरासंध छल-बल दिखला ले, अंतिम विजय हमारी है;
भीम-पराक्रम प्रकटित होगा, योगेश्वर गिरधारी है।
अर्जुन का रथ हाँक रहा जो, उसके हम हैं दीवाने ॥३॥