Tuesday 6 November 2012

चलो जलाएँ दीप वहाँ, जहाँ अभी भी अंधेरा है


चलो जलाएँ दीप वहाँ, जहाँ अभी भी अंधेरा है ॥धृ॥

स्वेच्छाचारी मुक्तविहारी युवजन खाए ठोकर आज 
मैं और मेरा व्यक्ति केन्द्रित विचार मन मे करता राज 
नष्ट-भ्रष्ट परिवार तन्त्र ने डाला अब यहाँ डेरा है ॥१॥

सुजला सुफला धरती माँ को मानव पशुओं ने लूटा 
पृथ्वी माँ हम बच्चे उसके, किया भाव यह सब झूठा 
भौतिकता की विषवेला ने अखिल विश्व को घेरा है ॥२॥

नही डरेंगे, नही रुकेंगे, बढते जाएँ आगे हम 
परिवर्तन की पावन आँधी लाकर ही हम लेंगे दम 
संघ शक्ति के रूप में देखो अब हो रहा सवेरा है ॥३॥

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