Monday 7 November 2011

हे ऋषिवर शत शत वंदन


हे ऋषिवर शत शत वंदन
हे ऋषिवर शत शत वंदन
हे ऋषिवर शत शत वंदन ॥धृ॥

हे महानतम संन्यासी, हिन्दुराष्ट्र के अभिलाषी 
जग कल्याणमयी संस्कृति का, करते थे पल-पल चिंतन ॥१॥

हे विराट हे स्नेहागार, हुए ध्येय से एकाकार 
गरलपान अमृत छलकाया, इस युग में सागर मंथन ॥२॥ 

हे परिव्राजक राष्ट्रपुजारी, तुमसे षडरिपु शक्ति हारी 
कोटि कोटि नवयुवक बढ़ रहे, कर न्योछावर निज यौवन ॥३॥

हे अभिनव अनथक योगी, निश्चित पूर्ण विजय होगी 
अखंड मान वैभव ले प्रगटे, दसों दिशा से यज्ञ सुगंध ॥४॥|    

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