Thursday 28 February 2013

भुवनमण्डले नवयुगमुदयतु


भुवनमण्डले नवयुगमुदयतु सदा विवेकानन्दमयम् 
सुविवेकमयं स्वानन्दमयम् ॥धृ॥

तमोमयं जन जीवनमधुना निष्क्रियताऽऽलस्य ग्रस्तम् 
रजोमयमिदं किंवा बहुधा क्रोध लोभमोहाभिहतम् 
भक्तिज्ञानकर्मविज्ञानै: भवतु सात्विकोद्योतमयम् ॥१॥

वह्निवायुजल बल विवर्धकं  पाञ्चभौतिकं विज्ञानम् 
सलिलनिधितलं गगनमण्डलं करतलफलमिव कुर्वाणम् 
दीक्षुविकीर्णं मनुजकुलमिदं घटयतुचैक कुटुम्बमयम् ॥२॥

सगुणाकारं ह्यगुणाकारं एकाकारमनेकाकारम् 
भजन्ति एते भजन्तु देवं स्वस्वनिष्ठया विमत्सरम् 
विश्वधर्ममिममुदारभावं प्रवर्धयतु सौहार्दमयम् ॥३॥

जीवे जीवे शिवस्यरूपं सदा भवयतु सेवायाम् 
श्रीमदूर्जितं महामानवं समर्चयतु निजपूजायाम् 
चरतु मानवोऽयं सुहितकरं धर्मं सेवात्यागमयम् ॥४॥

Thursday 17 January 2013

एकता, स्वतंत्रता, समानता रहे


एकता, स्वतंत्रता, समानता रहे।
देश में चरित्र की महानता रहे, महानता रहे ॥धृ॥

कण्ठ हैं करोड़ों, गीत एक राष्ट्र का
रंग हैं अनेक, चित्र एक राष्ट्र का
रूप हैं अनेक, भाव एक राष्ट्र का
शब्द हैं अनेक, अर्थ एक राष्ट्र का
चेतना, समग्रता, समानता रहे।
देश में चरित्र की महानता रहे, महानता रहे ॥१॥

विकास में विवेक स्वप्न एक राष्ट्र का
योजना अनेक, ध्यान एक राष्ट्र का
कर्म हैं अनेक, लक्ष्य एक राष्ट्र का
पंथ हैं अनेक, धर्मं एक राष्ट्र का
सादगी, सहिष्णुता, समानता रहे।
देश में चरित्र की महानता रहे, महानता रहे ॥२॥

जाति हैं अनेक, रक्त एक राष्ट्र का
पंक्ति हैं अनेक, लेख एक राष्ट्र का
गाँव हैं अनेक, अंग एक राष्ट्र का
किरण हैं अनेक, सूर्य एक राष्ट्र का
जागरण, मनुष्यता, समानता रहे।
देश में चरित्र की महानता रहे, महानता रहे ॥३॥

Sunday 2 December 2012

हम युवा हैं हम करें मुश्किलों का सामना



हम युवा हैं हम करें मुश्किलों का सामना
मातृभूमि हित जगे है हमारी कामना ॥धृ॥

संस्कृति पली यहाँ पुण्यभू जो प्यारी है
जननी वीरों की अनेक भरतभू हमारी है
ऐसा अब युवक कहाँ दिल मे ज़िसके राम ना ॥१॥

ज्ञान के प्रकाश की ले मशाल हाथ में
शील की पवित्रता है हमारे साथ में
एकता के स्वर उठे छूने को ये आसमाँ ॥२॥

आँधियों में स्वार्थ की त्यागदीप ना बुझे
मातृभू को प्राण दूँ याद है शपथ मुझे
मैं कहाँ अकेला हूँ साथ है ये कारवाँ ॥३॥

ये कदम हजारों अब रुक ना पाएँगे कभी
मंजिलों पे पहुंचकर ही विराम ले सभी
ध्येय पूर्ति पूर्व अब रुक ना पाये साधना ॥४

Wednesday 14 November 2012

बढें निरंतर हो निर्भय,
गूँजे भारत की जय-जय ।।धृ।।


याद करें अपना गौरव
याद करें अपना वैभव
स्वर्णिम युग को प्रकटाएँगे,
मन में धारें दृढ निश्चय ।।।।


वीरव्रती बनकर हुँकारें,
जन-जन का सामर्थ्य बढ़ाएँ ।
दशों दिशा से ज्वार उठेगा,
चीर चलेंगे घोर प्रलय ।।२।।

कर्म समर्पित हो हर प्राण,
यश अपयश पर ना हो ध्यान ।
व्यमोही आकर्षण तज दें,
आलोकित हो शील विनय ।।३।।

सृजन करें नव शुभ रचनाएँ, 

सत्य अहिंसा पथ अपनाएँ ।
मंगलमय हिंदुत्व सुधा से,
छलकाएँगे घट अक्षय ।।४।।

Tuesday 6 November 2012

चलो जलाएँ दीप वहाँ, जहाँ अभी भी अंधेरा है


चलो जलाएँ दीप वहाँ, जहाँ अभी भी अंधेरा है ॥धृ॥

स्वेच्छाचारी मुक्तविहारी युवजन खाए ठोकर आज 
मैं और मेरा व्यक्ति केन्द्रित विचार मन मे करता राज 
नष्ट-भ्रष्ट परिवार तन्त्र ने डाला अब यहाँ डेरा है ॥१॥

सुजला सुफला धरती माँ को मानव पशुओं ने लूटा 
पृथ्वी माँ हम बच्चे उसके, किया भाव यह सब झूठा 
भौतिकता की विषवेला ने अखिल विश्व को घेरा है ॥२॥

नही डरेंगे, नही रुकेंगे, बढते जाएँ आगे हम 
परिवर्तन की पावन आँधी लाकर ही हम लेंगे दम 
संघ शक्ति के रूप में देखो अब हो रहा सवेरा है ॥३॥

यह कल-कल छल-छल बहती, क्या कहती गंगा धारा ?


यह कल-कल छल-छल बहतीक्या कहती गंगा धारा ?
युग-युग से बहता आतायह पुण्य प्रवाह हमारा धृ 

हम इसके लघुतम जल कणबनते मिटते हैं क्षण-क्षण 
अपना अस्तित्व मिटाकरतन मन धन करते अर्पण 
बढते जाने का शुभ प्रणप्राणों से हमको प्यारा 

इस  धारा में घुल मिलकरवीरों की राख बही है 
इस  धारा में कितने हीऋषियों ने शरण ग्रही है 
इस धारा की गोदी मेंखेला इतिहास हमारा 

यह अविरल तप का फल हैयह राष्ट्रप्रवाह प्रबल है 
शुभ संस्कृति का परिचायकभारत माँ का आँचल है 
हिंदु की चिरजीवनमर्यादा धर्म सहारा 

क्या इसको रोक सकेंगेमिटने वाले मिट जाएँ  
कंकड पत्थर की हस्तीक्या बाधा बनकर आए 
ढह जायेंगे गिरि पर्वतकाँपे भूमंडल सारा 

अपनी धरती अपना अम्बर



अपनी धरती, अपना अम्बर, अपना हिन्दुस्थान ।
हिम्मत अपनी, ताकत अपनी, अपना वीर जवान ॥धृ॥

हिमगिरि शीश मुकुट रत्नारे, सागर जिसकॆ चरण पखारे
गंगा-यमुना की धाराएँ  निर्माणों की नीर सँवारे
नई-नई आशाएँ अपनी, अपना हर उत्थान ॥१॥

विमल इंदु की विमल चाँदनी, चंदा सूरज करे आरती
मलयानिल के मस्त झकोरे, चँवर डुलाए तुझे भारती
कण-कण गाए गौरव गाथा, अपना देश महान ॥२॥

नेफा और लद्दाख वतन के दोनों अपने आँगन द्वारे
प्राणों को न्योछावर करते भारत माँ के वीर दुलारे
निशिदिन याद हमें आते हैं वीरों के बलिदान ॥३॥

Friday 2 November 2012

भारत माँ का मान बढाने बढ़ते माँ के मस्ताने



भारत माँ का मान बढाने बढ़ते माँ के मस्ताने ।
कदम-कदम पर मिल-जुल गाते वीरों के व्रत के गाने ॥धृ॥

ऋषियों के मन्त्रों की वाणी भरती साहस नस-नस में।
चक्रवर्तियों की गाथा सुन, नहीं जवानी है बस में।
हर-हर महादेव के स्वर से विश्व-गगन को थर्राने ॥१॥ 

हम पर्वत को हाथ लगाकर संजीवन कर सकते हैं,
मर्यादा बनकर असुरों का बलमर्दन कर सकते हैं;
रामेश्वर की पूजा करके जल पर पत्थर तैराने ॥२॥

जरासंध छल-बल दिखला ले, अंतिम विजय हमारी है;
भीम-पराक्रम प्रकटित होगा, योगेश्वर गिरधारी है।
अर्जुन का रथ हाँक रहा जो, उसके हम हैं दीवाने ॥३॥

Saturday 21 July 2012

न हो साथ कोई


न हो साथ कोई अकेले बढ़ो तुम
सफलता तुम्हारे चरण चूम लेगी ॥धृ॥

सदा जो जगाए बिना ही जगा है
अँधेरा उसे देखकर ही भगा है।
वही बीज पनपा पनपना जिसे था
घुना क्या किसी के उगाए उगा है।
अगर उग सको तो उगो सूर्य से तुम
प्रखरता तुम्हारे चरण चूम लेगी ॥१॥

सही राह को छोड़कर जो मुड़े हैं
वही देखकर दूसरों को कुढ़े हैं।
बिना पंख तौले उड़े जो गगन में
न सम्बन्ध उनके गगन से जुड़े हैं।
अगर उड़ सको तो पखेरु बनो तुम
प्रवरता तुम्हारे चरण चूम लेगी ॥२॥

न जो बर्फ की आँधियों से लड़े हैं
कभी पग न उनके शिखर पर पड़े हैं।
जिन्हें लक्ष्य से कम अधिक प्यार खुद से
वही जी चुराकर विमुख हो खड़े हैं।
अगर जी सको तो जियो जूझकर तुम
अमरता तुम्हारे चरण चूम लेगी ॥३॥

Saturday 16 June 2012

अब जाग उठो, कमर कसो


अब जाग उठो, कमर कसो, मंजिल की राह बुलाती है
ललकार रही हमको दुनिया
, भेरी आवाज़ लगाती है ॥धृ॥

है ध्येय हमारा दूर सही
, पर साहस भी तो क्या कम है
हमराह अनेक
  साथी है, क़दमों में अंगद का दम है
असुरों
 की लंका राख करे वह आग लगानी आती है ॥१॥

पग-पग पर काँटे
 बिछे हुएव्यवहार कुशलता हममें है
विश्वास विजय का अटल लिएनिष्ठा कर्मठता हममें है
विजयी पुरखों की परंपराअनमोल हमारी थाती है ॥२॥

हम शेर शिवा के अनुगामीराणा प्रताप की आन लिए 
केशव माधव का तेज लिएअर्जुन का शरसंधान लिए
संगठन तन्त्र की शक्ति ही वैभव का चित्र सजाती है ॥३॥

Tuesday 8 May 2012

शत नमन माधव चरण में


शत नमन माधव चरण में
शत नमन माधव चरण में ॥धृ॥

आपकी पीयूष वाणी, शब्द को भी धन्य करती
आपकी आत्मीयता थी, युगल नयनों से बरसती
और वह निश्छल हंसी जो, गूँज उठती थी गगन में ॥१॥

ज्ञान में तो आप ऋषिवर, दीखते थे आद्यशंकर
और भोला भाव शिशु सा, खेलता मुख पर निरन्तर
दीन दुखियों के लिये थी, द्रवित करुणाधार मन में ॥२॥

दु:ख सुख निन्दा प्रशंसा, आप को सब एक ही थे
दिव्य गीता ज्ञान से युत, आप तो स्थितप्रज्ञ ही थे
भरत भू के पुत्र उत्तम, आप थे युगपुरुष जन में ॥३॥

सिन्धु सा गम्भीर मानस, थाह कब पाई किसी ने
आ गया सम्पर्क में जो, धन्यता पाई उसी ने
आप योगेश्वर नये थे, छल भरे कुरुक्षेत्र रण में ॥४॥

मेरु गिरि सा मन अडिग था, आपने पाया महात्मन
त्याग कैसा आप का वह, तेज साहस शील पावन
मात्र दर्शन भस्म कर दे, घोर षडरिपु एक क्षण में ॥५॥

Saturday 14 January 2012

मनसा सततम् स्मरणीयम्


मनसा सततम् स्मरणीयम्
वचसा सततम् वदनीयम्
लोकहितम् मम करणीयम् ॥धृ॥

न भोग भवने रमणीयम्
न च सुख शयने शयनीयम्
अहर्निशम् जागरणीयम्
लोकहितम् मम करणीयम् ॥१॥

न जातु दुःखम् गणनीयम्
न च निज सौख्यम् मननीयम्
कार्य क्षेत्रे त्वरणीयम्
लोकहितम् मम करणीयम् ॥२॥

दुःख सागरे तरणीयम्
कष्ट पर्वते चरणीयम्
विपत्ति विपिने भ्रमणीयम्
लोकहितम् मम करणीयम् ॥३॥

गहनारण्ये घनान्धकारे
बन्धु जना ये स्थिता गह्वरे
तत्र मया सन्चरणीयम्
लोकहितम् मम करणीयम् ॥४॥

Wednesday 11 January 2012

भारत म्हारो देश

भारत म्हारो देश पुठरो वेश, कि धन धन भारती
बोलो जय-जयकारउतारो आरती, (ओ उतारो आरती)-॥धृ॥

सोनो उगले धरती अम्बर, मोतीड़ा बरसावे रे
मुळकै सूरज चाँद गीत, कोयलड़ी मीठा गावे रे
हिमगिरि योगी राज शीश पर, ताज की गंगा वारती
समदरिया री लहरां, चरण पखारती (ओ उतारो आरती)-२ ॥१॥ 

कुण भूललो राणा नै, चेतक नै हल्दीघाटी नै
वीर शिवा-सो सूर कठै, दुनिया पूजै इण माटी नै
रणचंडी रो मोड़ दुर्ग, चित्तोड़ कि मौत भी हारती
 जौहर री लपटां नै, रोज निहारती (ओ उतारो आरती)-२ ॥२॥

तिलक गोखले भगत बोस, बापू झाँसी री महाराणी
जौहर देख जवानां रो, तू बता कठै इतरो पाणी 
गीता रो उपदेश, कर्म संदेश कृष्ण-सा सारथी
आज भरत री धरा विश्व ललकारती (ओ उतारो आरती)-२ ॥३॥

केशव माधव रो संघनाद, जण-जण रो हियो गूँजावे रे
आत्मत्याग और देशप्रेम रो, सबने पाठ  पढावे रे
भगवे ध्वज री आण, देश री शाण सदा सिंगारती
संगठना री शक्ति देश संवारती (ओ उतारो आरती)-२ ॥४॥